अम्बेडकरनगर :
सुशासन की रीढ़: पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और प्रशासनिक विवेक : डॉ सदानंद गुप्ता (लेख)
●पारदर्शी प्रशासनिक दक्षता पर वरिष्ठ अधिकारी के विचार।(लेख)
भारत में शासन की गुणवत्ता केवल नीतियों से नहीं,बल्कि उनके क्रियान्वयन की पारदर्शिता और उत्तरदायित्व से तय होती है।बीते वर्षों में यह स्पष्ट हुआ है कि यदि प्रशासनिक निर्णयों में सूचना की उपलब्धता, तर्कसंगतता और समयबद्धता न हो,तो सबसे अच्छी नीति भी अपना उद्देश्य खो देती है।
सूचना का अधिकार, शिकायत निवारण तंत्र और आंतरिक प्रशासनिक निगरानी—ये तीनों मिलकर शासन को जनोन्मुख बनाते हैं।परंतु इन व्यवस्थाओं का प्रभाव तभी सार्थक होता है, जब अधिकारी इन्हें केवल कानूनी बाध्यता नहीं,बल्कि संवैधानिक कर्तव्य के रूप में देखें।
प्रशासनिक अनुभव यह बताता है कि अधिकांश विवाद दुर्भावना से नहीं, बल्कि अस्पष्ट प्रक्रियाओं और संवाद के अभाव से उत्पन्न होते हैं।यदि निर्णयों का आधार स्पष्ट हो, रिकॉर्ड सुव्यवस्थित हो और नागरिक को यह भरोसा हो कि उसकी बात सुनी जा रही है, तो टकराव स्वतः कम हो जाता है।
आज आवश्यकता है ऐसे संस्थागत ढाँचे की जो:
सूचना को बोझ नहीं, सशक्तिकरण का माध्यम माने
नियमों को कठोरता नहीं,न्याय का साधन बनाए और प्रशासन को शक्ति नहीं,सेवा का स्वरूप दे संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका यहाँ निर्णायक हो जाती है।ये संस्थाएँ न तो सरकार के विरुद्ध होती हैं,न ही सरकार की अनुगामी—बल्कि संविधान की आत्मा की संरक्षक होती हैं।
यदि प्रशासनिक अनुभव,वैधानिक विवेक और संतुलित दृष्टि को एक साथ जोड़ा जाए,तो शासन केवल प्रभावी नहीं, बल्कि विश्वसनीय बन सकता है।यही विश्वास किसी भी लोकतंत्र की सबसे बड़ी पूंजी है।
