शनिवार, 13 सितंबर 2025

लखनऊ : महाविद्यालय में हिन्दी दिवस पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन||Lucknow : One day national seminar organized on Hindi Diwas in the college||

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लखनऊ : 
महाविद्यालय में हिन्दी दिवस पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन।
दो टूक : लखनऊ के नवयुग कन्या महाविद्यालय के हिन्दी विभाग ने "हिन्दी: एक सांस्कृतिक और भाषाई यात्रा" विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन किया। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम का उद्देश्य हिन्दी भाषा के सांस्कृतिक और भाषाई महत्व को उजागर करना था। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन, माल्यार्पण एवं सरस्वती वंदना के साथ किया गया। अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान अंगवस्त्र, पौध एवं स्मृति चिह्न देकर किया गया।संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में श्री आशुतोष शुक्ल, राज्य संपादक, दैनिक जागरण, उ०प्र०, उपस्थित रहे। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के  रूप में प्रो० मनोज कुमार पाण्डेय, कालीचरण पी०जी० कॉलेज, लखनऊ, और प्रख्यात लेखिका व पत्रकार श्रीमती पायल लक्ष्मी सोनी, लखनऊ ने विशिष्ट वक्ता के रूप में विचार साझा किए। प्रो. पाण्डेय ने अपने वक्तव्य में बताया कि भाषा और संस्कृति के मध्य गहन संबंध है।राष्ट्रकवि गुप्त की पंक्तियों से व्याख्यान का आरंभ हुआ, जिसमें यह बताया गया कि आदिम युग में ध्वनियों, शब्दों, वाक्यों तथा भाषा का क्रमिक विकास हुआ। भारतीय संस्कृति को समझने में भाषा की अहम भूमिका है। हिंदी की भाषाई यात्रा भारतीय संस्कृति का मूल आधार है, और यह भविष्य में भारत की राष्ट्रभाषा बनेगी, ऐसी प्रो. पाण्डेय की धारणा है। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदी ने सिनेमा, अर्थतंत्र, समाज और राजनीति में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है और यह अत्यंत सामर्थ्यवान भाषा है। आदिकाल में अपभ्रंश भाषा ने युद्धों की संस्कृति को दर्शाया, जबकि भक्तिकाल में अवधी और ब्रजभाषा ने रामचरित तथा कृष्ण काव्य के माध्यम से भक्ति संस्कृति के उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किए। आधुनिक युग में हिंदी का स्वरूप परिवर्तित हो गया है, वह अब हिंग्लिश का रूप ले रही है। हिंदी साहित्य का गहन विश्लेषण करते हुए यह निष्कर्ष निकाला गया कि भाषा निसंदेह संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने का कार्य करती है।लेखिका और संपादक पायल लक्ष्मी जी कहा कि हिन्दी को केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता का प्रतिबिंब है। हिंदी केवल एक भाषा नहीं, अपितु हमारी राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव का प्रतीक है। यह उत्तर से दक्षिण तक, एक बहुभाषी राष्ट्र में भी अपना वर्चस्व बनाए हुए है। भाषा हमारे अस्तित्व और पहचान का सशक्त माध्यम होती है। आदिकाल से लेकर आज तक, सभी साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं द्वारा भारतीय संस्कृति और सभ्यता को व्यक्त करने का प्रयास किया है। हिंदी हमारे भावों की अभिव्यक्ति का माध्यम है और लोक साहित्य, लोकगीत, भारतीय संस्कृति का दर्पण है, उसकी भाषा भी हिंदी ही है। श्री आशुतोष शुक्ल जी ने अपने  संबोधन में हिंदी की समृद्ध इतिहास और भविष्य पर प्रकाश डाला ।हिंदी संवाद की भाषा है, ज्ञान की भाषा बनने की ओर अग्रसर है।
।उसके समीक्षकों ने कैद कर दिया ।वह केवल आज विमर्श की भाषा बन कर रह गई।हमारे शोध का विषय  आज सीमित हो गया है आवश्यकता है उसे समाज के विविध  संदर्भों से जोड़ा जाए।हिंदी भाषा की यात्रा अनंत है। जितना अप्रतिम तुलसी का नायक है उतना ही अप्रतिम उस नायक का गायक है।
हिंदी सिनेमा ने हिंदी को वैश्विक पटल पर पहचान दिलाई।
कार्यक्रम में महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो० मंजुला उपाध्याय ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भाषा और संस्कृति दोनों एक दूसरे की पूरक हैं। भाषा संस्कृति की संवाहिका है। हिन्दी भाषा भारत की आत्मा है, जो हमारे समृद्ध इतिहास, विविध संस्कृति और गहन विचारों को दर्शाती है। यह न केवल अभिव्यक्ति का माध्यम है, अपितु हमारी पहचान का भी प्रतीक है, जो हमें एक सूत्र में बाँधता है। प्रत्येक भारतीय के हृदय में इसका एक विशेष स्थान है, क्योंकि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत को पीढ़ी-दर-पीढ़ी संजोए रखती है। यही वह भाषा है जो हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखती है और हमारी राष्ट्रीय चेतना को जाग्रत करती है। इस अवसर पर हिन्दी विभागाध्यक्षा प्रो० मंजुला यादव, डॉ० अपूर्वा अवस्थी, डॉ० अंकिता पाण्डेय, डॉ० मेघना यादव, और अन्य विभागों के प्राध्यापक भी उपस्थित रहे।
पूरे कार्यक्रम का कुशल संचालन डॉ० अपूर्वा अवस्थी ने किया। संगोष्ठी ने हिन्दी और सांस्कृतिक यात्रा के विभिन्न आयामों को गहराई से समझने का अवसर प्रदान किया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान से हुआ।