गोंडा- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र प्रचार प्रमुख सुभाष जी ने बताया है की स्थापना के शताब्दी वर्ष पूर्ण होने पर आगामी विजयदशमी से लगातार एक साल तक संघ परिवार सम्पूर्ण राष्ट्र में जन-जागरूकता के लिए सात प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करेगा। इन कार्यक्रमों में पथ संचलन, घर-घर सम्पर्क अभियान, हिंदू सम्मेलनों का आयोजन, सामाजिक सद्भाव बैठकें, प्रमुख जन गोष्ठी, युवा कार्यक्रम और शाखा विस्तार जैसे आयोजन शामिल हैं। वह गुरुवार को जिला मुख्यालय स्थित संघ कार्यालय पर मीडिया से बात कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि आरएसएस पिछले 100 वर्षों से अपने स्वयं सेवकों के माध्यम से व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के लिए निरंतर काम कर रहा है। अब तक हम छह समूहों वैचारिकी, शिक्षा, सेवा, सुरक्षा, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में काम करते हुए राष्ट्रोत्थान और समाजोत्थान की दिशा में आगे बढ़ते रहे हैं। इसी क्रम में संघ के शताब्दी वर्ष के पूर्ण होने पर आगामी दो अक्टूबर (विजयदशमी) से अखिल भारतीय स्तर पर सात प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। इन कार्यक्रमों के तहत दो अक्टूबर से 15 अक्टूबर तक समाज में अनुशासन का संदेश देने के लिए स्वयं सेवकों का गणवेश में पथ संचलन का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। दो नवम्बर से दो दिसम्बर तक घर-घर सम्पर्क अभियान चलाया जाएगा। यह विश्व का अब तक का सबसे बड़ा सम्पर्क अभियान होगा। क्षेत्र प्रचार प्रमुख ने बताया कि 15 दिसम्बर 2025 से 15 जनवरी 2026 के मध्य प्रत्येक न्याय पंचायत स्तर पर हिंदू सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। फरवरी 2026 में विभिन्न मत व पंथों को मानने वाले लोगों के प्रमुखों के साथ सामाजिक सद्भाव कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। अप्रैल 2026 में समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को शामिल करके प्रमुख जन गोष्ठी आयोजित की जाएगी। अगस्त 2026 में युवाओं के लिए विभिन्न प्रकार का कार्यक्रम आयोजित होगा। अंत में 15 सितम्बर 2026 से 10 अक्टूबर 2026 तक शाखा विस्तार का कार्यक्रम संचालित होगा। हमारा प्रयास होगा कि संघ की अधिकतम शाखाओं का गठन करके उनका संचालन किया जाए।
सुभाष जी ने कहा कि समाज में व्यापक सुधार के लिए इन गतिविधियों के माध्यम से संघ परिवार ने पंच परिवर्तन का नारा दिया है। इन पंच परिवर्तन में पांच आयाम सामाजिक समरसता, कुटुम्ब प्रबोधन, पर्यावरण, स्व का बोध और नागरिक कर्तव्य शामिल हैं। पहला आयाम ‘सामाजिक समरसता’ है, जिसमें जाति-भेद मिटाकर भाईचारा बढ़ाने पर जोर है। अनुसूचित जाति-जनजाति के बंधुओं के साथ समानता, उनके घर जाकर सहभागिता और त्यौहारों में परस्पर शामिल होना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। दूसरा आयाम ‘कुटुंब प्रबोधन’ है, जिसके अंतर्गत परिवार की एकता, संस्कारों का संवर्धन और परंपरागत मूल्यों का पालन अनिवार्य माना गया है। सप्ताह में एक बार सामूहिक पूजा या महापुरुषों की चर्चा, बच्चों को संस्कारित व्यवहार सिखाना और नित्य मंगल संवाद परिवार को मजबूत बनाते हैं। तीसरा आयाम ‘पर्यावरण संरक्षण’ है, जिसमें जल बचाने, प्लास्टिक हटाने और हरियाली बढ़ाने जैसी पहलें शामिल हैं। अपने घर और आसपास पर्यावरण- अनुकूल जीवनशैली अपनाकर सृष्टि के साथ संतुलित संबंध बनाए रखने का संदेश दिया गया है। चौथा आयाम ‘स्व’ है, जो व्यक्ति में अपने अस्तित्व और कर्तव्यों के प्रति जागरूकता लाता है। इससे नागरिक जिम्मेदार बनते हैं और राष्ट्र की समृद्धि व उन्नति का आधार तैयार होता है। पांचवां और अंतिम आयाम ‘नागरिक कर्तव्य’ है, जिसके अंतर्गत हमारे अंदर राष्ट्र प्रथम का भाव पैदा हो। इसके तहत कानून का पालन, कुरीतियों के उन्मूलन और सामाजिक बुराइयों से मुक्ति पर बल दिया जाता है। इन सभी आयामों का उद्देश्य केवल चिंतन नहीं, बल्कि व्यवहार में उन्हें उतारकर समाज को संगठित करना है। संघ का मानना है कि जब नागरिक, परिवार और समाज मिलकर इन मूल्यों का पालन करेंगे तभी राष्ट्र बल और वैभव से सम्पन्न होकर विश्व को सुख और शांति का मार्ग दिखा सकेगा।