लखनऊ :
संविधान शिल्पी बी.एन.राव और डॉ.अंबेडकर ।।
(एक शोधात्मक विश्लेषणात्मक लेख)
।।उदयराज मिश्र।।
दो टूक : वर्तमान परिवेश में आजकल ये दोनों ही नाम देश में सुर्खियों में हैं,सोशल मीडिया और सर्वत्र संवाद के विषयवस्तु बने हुए हैं।ऐसे में दोनों के योगदान पर चर्चा समीचीन लगती है।विडंबना तो यह भी है कि पंडित नेहरू के सहपाठी और विश्वस्तरीय विधिवेत्ता बी.एन.राव को कुछ ओछी मानसिकता वाले तुच्छ लोग अंबेडकर के क्लर्क कहने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं,जबकि ऐसे घृणित विचारों वाले तथाकथित भीमटे न तो प्रामाणिक ग्रंथों का अध्ययन करते हैं और न ही सच्चाई को जानने ओर स्वीकारते ही हैं।। वस्तुत:भारतीय संविधान निर्माण के इतिहास में ये दोनों नाम ऐसे हैं जिनकी बौद्धिक क्षमता और विधिक दृष्टि ने संविधान की दिशा और स्वरूप दोनों को प्रभावित किया।जिनमें डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्हें संविधान सभा ने “प्रधान वास्तुकार” कहा, और दूसरे सर बेनगल नरसिंग राव ,जो संविधान सभा के संविधान सलाहकार थे और जिनके बनाए संविधान को ही असली जामा संविधान सभा ने पहनाया तथा मसौदा समिति में जिसे सर्वसम्मति से अंगीकृत किया गया।
यद्यपि डॉ. अंबेडकर को संविधान के शिल्पी के रूप में व्यापक ख्याति मिली, किंतु अंबेडकर स्वयं बी.एन. राव के योगदान और बौद्धिक परामर्श के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त करते थे।
सर बी.एन. राव (1887–1953) भारतीय सिविल सेवा (ICS) के प्रतिष्ठित अधिकारी और प्रखर विधिज्ञ थे। उन्होंने संविधान सभा की तैयारी से पूर्व ही विश्व के अनेक संविधानों—अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और सोवियत संघ—का तुलनात्मक अध्ययन किया और भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए एक रूपरेखा प्रस्तुत किया।
उनकी विधिक समझ, प्रशासनिक अनुभव और अंतरराष्ट्रीय दृष्टि ने संविधान सभा को एक ठोस रूपरेखा दी।
डॉ. अंबेडकर, संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष नियुक्त हुए। परंतु ड्राफ्टिंग कमेटी के लिए जो प्रारंभिक कार्य हुआ था, उसका आधार बी.एन. राव की रिपोर्ट और प्रारूप था।
संविधान सभा में और बाद के सार्वजनिक वक्तव्यों में डॉ. अंबेडकर ने बार-बार स्वीकार किया कि—
“बी.एन. राव ने संविधान निर्माण में अमूल्य मार्गदर्शन दिया; वे ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने हमारे संविधान की रूपरेखा तैयार की।”
— (डॉ. अंबेडकर, संविधान सभा में 25 नवम्बर 1949 के भाषण में)
अंबेडकर ने बी.एन. राव को “संविधान का प्रारंभिक विचारक” माना। उन्होंने माना कि संविधान सभा की बौद्धिक तैयारी राव के अध्ययन पर टिकी थी।वे कहते थे कि राव ने जो प्रारंभिक ढाँचा प्रस्तुत किया, वही संविधान के विस्तृत रूप का आधार बना।
अंबेडकर विधिशास्त्र के गहरे अध्येता थे, पर उन्होंने यह माना कि बी.एन. राव की अंतरराष्ट्रीय संवैधानिक विशेषज्ञता भारत के लिए अत्यंत उपयोगी रही।उन्होंने राव को पश्चिमी और भारतीय शासन-प्रणालियों के संगम को समझने में दक्ष कहा।
यद्यपि दोनों के बीच वैचारिक मतभेद भी रहे।राव संसदीय प्रणाली के साथ कुछ हद तक संघीय लचीलेपन के पक्षधर थे, जबकि अंबेडकर केंद्रीकृत संघीय ढाँचे की ओर झुके थे।राव मौलिक अधिकारों को न्यायिक व्याख्या के अधीन रखने के पक्ष में थे, जबकि अंबेडकर चाहते थे कि नागरिक अधिकार सीधे लागू होने योग्य हों।
लेकिन इन मतभेदों के बावजूद दोनों में आपसी सम्मान और बौद्धिक संवाद बना रहा।
जब संविधान 1949 में पारित हुआ, तो अंबेडकर ने संविधान सभा में राव का विशेष उल्लेख करते हुए कहा—
“हम सब उनके ऋणी हैं। उन्होंने जो कार्य प्रारंभ किया, उसी पर हमने आगे का निर्माण किया। संविधान सभा उनका सदैव आभारी रहेगी।”
अंबेडकर ने संविधान को ‘कानूनी तर्क और सामाजिक यथार्थ का संगम’ बताया। उनका मानना था कि बी.एन. राव ने भारतीय परिस्थितियों में विदेशी संवैधानिक अनुभवों का अनुकूलन किया।उन्होंने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संवैधानिक सर्वोच्चता के विचारों को व्यवस्थित किया।
न्यायिक पुनरावलोकन और मौलिक अधिकारों की संरचना में राव की सलाह निर्णायक रही।
राज्य नीति के निदेशक तत्व के मूल विचार आयरलैंड से उन्होंने ही सुझाए, जिन्हें अंबेडकर ने संविधान में दार्शनिक रूप दिया।
अंबेडकर ने इस दृष्टि से बी.एन. राव को एक “संविधानिक इंजीनियर” कहा जा सकता है, जिनके तकनीकी नक्शे पर उन्होंने सामाजिक न्याय का महल निर्मित किया।
। बी.एन. राव और डॉ. अंबेडकर के संबंध को “मस्तिष्क और आत्मा का संयोजन” कहा जा सकता है।राव ने जिस वैधानिक ढाँचे की नींव रखी, अंबेडकर ने उसमें भारतीय समाज की आत्मा—समानता, स्वतंत्रता और बंधुता—का संचार किया।
राव की विधिक संरचना और अंबेडकर की सामाजिक दृष्टि ने मिलकर भारत को एक आधुनिक, लोकतांत्रिक संविधान प्रदान किया।
डॉ. अंबेडकर और बी.एन. राव का संबंध भारतीय संवैधानिक इतिहास का अद्भुत उदाहरण है—जहाँ बौद्धिकता और व्यावहारिकता का संगम हुआ।
अंबेडकर ने अपने जीवन में बहुत कम भारतीय प्रशासकों की ऐसी सराहना की जैसी उन्होंने राव की की।वे उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखते थे जिन्होंने संविधान के प्रथम विचार को साकार दिशा दी।
इस प्रकार, बी.एन. राव के प्रति अंबेडकर के विचार न केवल कृतज्ञता और सम्मान के प्रतीक हैं, बल्कि यह भी दर्शाते हैं कि किसी भी महान रचना में व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक बौद्धिक प्रयास का स्थान सर्वोपरि होता है।
संदर्भ:
1. संविधान सभा की कार्यवाही, खंड XI (25 नवम्बर 1949)।
2. “The Framing of India’s Constitution” – B.N. Rau, 1960.
3. डॉ. बी. आर. अंबेडकर: संविधान सभा में वक्तव्य संग्रह।
4. Granville Austin – The Indian Constitution: Cornerstone of a Nation.