गौतमबुद्धनगर: किसान आंदोलन में दिनभर दिखा जोश, नारे-भाषणों से गूंजा प्राधिकरण मुख्यालय — लेकिन शाम ढलते ही सूना पड़ा मैदान!!
!!वरिष्ठ संवाददाता देव गुर्जर!!
दो टूक: नोएडा !!
नोएडा में अब खेत तो नहीं बचे, लेकिन किसान का जज़्बा आज भी मिट्टी से उतना ही गहरा जुड़ा है। बुधवार को उसी जोश और आक्रोश के साथ किसानों ने एक बार फिर प्राधिकरण मुख्यालय का रुख किया। जमीन अधिग्रहण, मुआवजा और पुनर्वास की मांगों को लेकर किसानों ने आर-पार की लड़ाई का ऐलान किया। दावा किया गया कि इस आंदोलन में 81 गांवों के किसान शामिल हुए और यह धरना अनिश्चितकालीन रहेगा।
धरना स्थल पर सुबह से ही माहौल गर्म रहा। ढोल-नगाड़ों की थाप और जोशीले नारों के बीच मंच से किसान नेताओं ने प्राधिकरण और शासन पर निशाने साधे। किसान नेता अशोक चौहान ने कहा कि किसानों को वर्षों से सिर्फ आश्वासन दिए जा रहे हैं, अब जवाब चाहिए — ठोस कार्रवाई चाहिए। उन्होंने चेतावनी दी कि जब तक किसानों की मांगे नहीं मानी जातीं, तब तक आंदोलन खत्म नहीं होगा।
किसानों ने मंच से सवालों की झड़ी लगाई। मौके पर पहुंचे विशेष कार्याधिकारी क्रांति शेखर सिंह किसानों के प्रश्नों के सामने असहज दिखे। किसानों ने कहा कि अब वे केवल प्राधिकरण अध्यक्ष से ही वार्ता करेंगे। दूसरी ओर, सहायक पुलिस आयुक्त प्रवीण कुमार सिंह अपनी टीम के साथ पूरे दिन मोर्चे पर डटे रहे — न केवल शांति व्यवस्था बनाए रखी बल्कि दोनों पक्षों के बीच संवाद की कड़ी भी बने।
कुछ देर तक नारे, भाषण और हुंकारों से पूरा परिसर गूंजता रहा। किसान बैरिकेड्स तक पहुंच गए, प्राधिकरण पर चढ़ाई का प्रतीकात्मक प्रदर्शन भी हुआ। लेकिन जैसे-जैसे सूरज ढलने लगा, भीड़ छंटने लगी। शाम होते-होते वही धरना स्थल, जो कुछ घंटे पहले ऊर्जा से भरपूर था, अब शांत और सूना नज़र आया। तंबू तना रहा, पर किसान गायब थे — पीछे रह गईं केवल पानी की खाली थैलियां, उड़ती धूल और एक अधूरी लड़ाई का एहसास।
धरना “अनिश्चितकालीन” से “अनिश्चित” में बदल गया — यह तय है कि आग बुझी नहीं, बस राख के नीचे सुलग रही है।
और माहौल पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं इन फिल्मी पंक्तियों की दो लाइनें:
🎵 “कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना,
छोड़ो बेकार की बातों में कहीं बीत न जाए रैना…” 🎵
शायद किसानों ने भी यही सोचकर शाम को घर की राह ली —
कल फिर आएंगे, आवाज फिर उठेगी, और लड़ाई एक बार फिर ज़मीन की गूंज में बदल जाएगी।।🌾
