अम्बेडकरनगर:
सरदार पटेल:भारत के बिस्मार्क : डॉ.उदयराज मिश्र।
दो टूक : उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र पर्यंत विस्तीर्ण भारतीय गणराज्य की जो संकल्पना कभी तक्षशिला के आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य ने की थी, उसे स्वतंत्रता प्राप्ति के समय लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने साकार कर दिखाया। कदाचित यदि सरदार पटेल न होते, तो आज भारत का लगभग 40 प्रतिशत भूभाग अब भी 562 छोटी-बड़ी रियासतों में बँटा होता, या फिर भारत के भीतर अनेक “पाकिस्तान” अस्तित्व में आ चुके होते।
आज जब संविधान के शिल्पियों और निर्माताओं को लेकर विवादास्पद बहसें उठती हैं, तब यह स्मरण करना समीचीन है कि यदि सरदार पटेल ने रियासतों का भारत में विलय न किया होता, तो संविधान निर्माण का औचित्य ही न रह जाता। इस दृष्टि से बारदोली सत्याग्रह के इस अजेय सेनानी को “आधुनिक भारत का शिल्पकार” और “राष्ट्र एकता का मूर्त प्रतिमान” कहना सर्वथा न्यायोचित है। निस्संदेह, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) और अक्साई चिन को पुनः भारत में सम्मिलित करना ही सरदार पटेल के प्रति हमारी सच्ची राष्ट्रभक्तिपूर्ण श्रद्धांजलि होगी।
इतिहास साक्षी है कि सिकंदर के आक्रमण के समय भारत जिस राजनीतिक विखंडन से जूझ रहा था, वैसा ही दृश्य 1947 में भी था। असंख्य स्वतंत्र रियासतें — अपने-अपने झंडे, सेनाएँ और राजसी अहंकार लिए — स्वतंत्रता के बाद भी स्वयं को भारत का अंग मानने को तैयार नहीं थीं। देश के लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान से प्राप्त आज़ादी तब तक अधूरी थी, जब तक इन टुकड़ों को जोड़कर एक अखंड भारत न बनाया जाए।
यह कार्य अत्यंत कठिन और जोखिमपूर्ण था, किंतु सरदार पटेल ने असाधारण कूटनीति, दृढ़ इच्छाशक्ति और सूझबूझ से इसे संभव कर दिखाया। इसीलिए उन्हें आधुनिक भारत का चाणक्य कहा जाता है। यद्यपि संविधान निर्माण के विधिक पक्ष में डॉ. बी. आर. अम्बेडकर और सर बी. एन. राव प्रमुख थे, किंतु राष्ट्र निर्माण के वास्तविक केंद्रबिंदु केवल और केवल सरदार वल्लभभाई पटेल ही थे।
5 जुलाई 1947 को जब देशी रियासतों का विभाग बनाया गया, तब उसके प्रमुख के रूप में सरदार पटेल ने समझ लिया कि यदि रियासतों का विलय तत्काल नहीं हुआ, तो आज़ादी का स्वाद कड़वा साबित होगा। उन्होंने अपने सचिव वी. पी. मेनन के साथ देशभर का दौरा कर राजाओं, महाराजाओं और तालुकेदारों को भारत में सम्मिलित होने के लिए राज़ी किया।
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का अपेक्षित सहयोग न मिलने के बावजूद पटेल ने अद्भुत दक्षता और संयम के साथ कार्य किया। परिणामस्वरूप, 15 अगस्त 1947 तक हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर को छोड़कर लगभग सभी रियासतें भारत में विलय के लिए तैयार हो गईं।
पटेल और नेहरू दोनों ही इंग्लैंड में शिक्षित बैरिस्टर थे। परंतु जहाँ नेहरू को गुलाब के फूल से सुसज्जित कोट प्रिय था, वहीं सरदार का हृदय सदैव गांवों की धूल और किसानों की पीड़ा में रमा रहता था। स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री के रूप में सरदार को हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर जैसी जटिल रियासतों के विलय में नेहरू से अपेक्षित सहयोग न मिलना ही आज की कश्मीर समस्या का मूल कारण बन गया।
यद्यपि प्रधानमंत्री मोदी ने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 और 35(ए) समाप्त कर सरदार पटेल के स्वप्न को आंशिक रूप से साकार किया है, फिर भी जब तक पीओके और अक्साई चिन पुनः भारत में नहीं आते, तब तक उस स्वप्न की पूर्णता नहीं कही जा सकती।
स्वतंत्रता के समय हैदराबाद का निज़ाम स्वतंत्र रहकर पाकिस्तान समर्थक बनने की तैयारी में था; जूनागढ़ का नवाब खुलेआम पाकिस्तान में विलय चाहता था; जबकि कश्मीर के महाराजा हरिसिंह स्वतंत्र रहकर भारत के साथ सहयोगी संबंधों के पक्षधर थे।
प्रधानमंत्री नेहरू की असहमति के बावजूद सरदार पटेल ने “ऑपरेशन पोलो” के माध्यम से हैदराबाद की रजाकार सेना को आत्मसमर्पण करने पर विवश कर दिया। यह रणनीति विश्व इतिहास में बिस्मार्क की नीतियों के समकक्ष कही जा सकती है। जूनागढ़ में भी पटेल के नाम से ही नवाब पाकिस्तान भाग गया और जूनागढ़ भारत का अभिन्न अंग बन गया।
कश्मीर के संदर्भ में, यह ऐतिहासिक तथ्य है कि नेहरू की व्यक्तिगत कटुता और राजनीतिक अदूरदर्शिता के कारण कश्मीर का प्रश्न संयुक्त राष्ट्र तक जा पहुँचा। जबकि उसी समय सरदार पटेल की दृढ़ता के परिणामस्वरूप महाराजा हरिसिंह ने भारत में विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए। कश्मीर की अस्थायी स्थिति (370 व 35A) वास्तव में पटेल के सपनों पर एक परदा थी, जिसे 2019 में हटाकर भारत ने लौहपुरुष को सच्ची श्रद्धांजलि दी।
सरदार पटेल न केवल एक राष्ट्र-एकीकरणकर्ता थे, बल्कि एक महान प्रशासक और विधिवेत्ता भी थे। ब्रिटिश शासन की Indian Civil Service (ICS) को भारतीय परिप्रेक्ष्य में रूपांतरित करते हुए उन्होंने Indian Administrative Service (IAS) तथा Union Public Service Commission (UPSC) को आधुनिक स्वरूप दिया।उन्होंने कहा था—
“भारत की अखंडता केवल सैनिक शक्ति से नहीं, बल्कि प्रशासनिक सुदृढ़ता से भी बनी रहेगी।”आज भारतीय प्रशासनिक सेवा जिस गौरव और अनुशासन की प्रतीक है, उसका श्रेय सरदार पटेल की दूरदर्शिता को ही जाता है।
31 अक्टूबर, सरदार पटेल का जन्मदिवस, “राष्ट्रीय एकता दिवस” के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक भारतीय का यह कर्तव्य है कि वह इस दिन केवल औपचारिक श्रद्धांजलि न अर्पित करे, बल्कि उनके कार्य, व्यक्तित्व और राष्ट्रभक्ति से प्रेरणा ग्रहण करे।
बारदोली आंदोलन के इस वीर पुत्र, खेड़ा के इस सपूत और आधुनिक भारत के इस बिस्मार्क के प्रति यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि हम उनके एकीकृत, सशक्त और आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न को पूर्णता तक पहुँचाएँ।
