लखनऊ :
।।आतंकियों पर बरस रहा सिंदूर।।
दो टूक : कविता विद्यावाचस्पति उदयराज मिश्र की--
निर्दोषो को मारकर, बनता है जो शेर।
उसको उसकी मांद में,किया हिंद ने ढेर।।
किया हिंद ने ढेर,बना अब भीगी बिल्ली।
पापी को एहसास,बाप उसकी है दिल्ली।।
रंग बदलते पाक पर,बरस रहा सिंदूर।
रहम मांगते दिख रहे,जो बनते मगरूर।।
जो बनते मगरूर, पैंट उनकी अब गीली।
कांप रहे शहबाज, हुईं पतलूनें ढीली।।
राजनाथ तो दे गए,हनुमत का संदेश।
जैसे को तैसे भली,शाश्वत यह उपदेश।।
शाश्वत यह उपदेश,किंतु पापी कब मानें।
जबतक पड़े न मार,बाघ अपने को जानें।।
रही सही पूरी कसर, पूरी हो इसबार।
पीओके वापस मिले,चलता रहे प्रहार।।
चलता रहे प्रहार, पाक खंडों में टूटे।
धर्म पूंछ फिर और,सुहाग फिर से न लूटे।।
- विद्यावाचस्पति उदयराज मिश्र