गोण्डा।
प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में राजपाट सब छिनने के बाद भी आजीवन अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का बिगुल बजाने वाले गोण्डा - नरेश महाराजा देबी बक्श सिंह की परम्परा एवं अवध की उर्वर शौर्य - भूमि गोण्डा में जन्में गुरुप्रसाद गुप्ता जैसे अनेक सेनानियों ने महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस के आह्वान पर अपना धन सम्पत्ति एवं वैभव सहित सर्वस्व त्याग कर ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ संघर्ष करते हुए भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराया। स्वतन्त्रता सेनानियों की कड़ी में गुरु प्रसाद एक ऐसे ही संघर्षशील सेनानी हुए जिन्होंने परिवार की करोड़ों की सम्पत्ति से बेदखल होने के बावजूद स्वतन्त्रता आन्दोलन से मुंह नहीं मोड़ा। सेनानी गुरुप्रसाद गुप्ता का जन्म 19 अगस्त सन् 1919 को कृष्ण जन्माष्टमी के पावन दिवस में नगर के मुहल्ला गोलागंज में एक प्रतिष्ठित व्यापारी परिवार में हुआ। पिता रामेश्वर प्रसाद लोहिया धर्मशाला के संस्थापक व नगरसेठ के नाम से विख्यात थे। वैभवशाली परिवार में जन्में गुरुप्रसाद बचपन से ही शिक्षा के साथ देश प्रेम व राष्ट्रीयता से ओतप्रोत शोर्य- कविता की रचना करने लगे। गांधी और सुभाष से प्रभावित होकर उन्होंने किशोरावस्था से ही नगर में कांग्रेस द्वारा चलाए जा रहे सत्याग्रह आन्दोलनों में भाग लेना शुरू किया। जनपद में न दिनों अग्रणी कांग्रेस नेता बाबू ईश्वर शरण, बाबू लाल विहारी टण्डन, खजुरी के बाबू द्वारिका सिंह, मसकनवा को केन्द्र बनाकर कांग्रेस आन्दोलन चला रहे नेपाल राष्ट्र के पहाड़ी बाबा, बभनान स्थित सिसई रानीपुर के मिश्र परिवार में रह कर गोण्डा व अयोध्या में आन्दोलन को धार देने के साथ जनता को जागरूक कर रहे थे। सत्याग्रह के क्रम में ब्रिटिश हुकूमत के रिकार्ड में दर्ज खतरनाक नेता के अभियोग में उन्हें 11 दिसम्बर 1940 को गिरफ्तार किया गया। अदालत से उन्हें नौ मास और 50 रुपये की सजा हुई। जुर्माना देने से इंकार करने पर उन्हें चार मास अतिरिक्त कारावास झेलना पड़ा। कारावास के दौरान ही ब्रिटिश सत्ता के कोप से बचने के लिए पिता ने उन्हें अपनी चल - अचल सम्पत्ति से बेदखल कर दिया। अंग्रेजों की सरपरस्ती में व्यापार कर रहे सम्बन्धियों एवं शुभचिंतकों ने भी उनसे नाते-रिश्ते तोड़ लिए।
जेल से छूटने के बाद उन्हें सक्रिय राजनीतिक जीवन एवं पारिवारिक जीवन के मध्य सामंजस्य बिठाने के लिए लिए घोर संघर्ष करना पड़ा। सत्ता के दुश्मन और परिजनों से उपेक्षित युवक गुरुप्रसाद को जीविका के लिए घर से पलायन कर वाराणसी में पत्रकारिता के साथ अखबार बेंचना पड़ा। कुछ वर्षों तक उन्होेंने साइकिल की घंटी बनाने वाली एक फैक्ट्री में नौकरी भी किया। आजादी की रजत जयंती पर 1972 में स्वतन्त्रता सेनानियों के लिए प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने पेन्शन देने की घोषणा की लेकिन घोर आर्थिक विपन्नावस्था में अभिशप्त जीवन जी रहे गुरुप्रसाद ने लोगों के आग्रह पर भी पेन्शन फार्म नही भरा। पत्रकारिता में सक्रिय अपने पुत्र अजय गुप्ता के अनुरोध पर उन्होंने पेन्शन फार्म यह कहकर फाड़ दिया कि आजादी के आन्दोलन में हमने इसलिए संघर्ष नहीं किया था कि देश आजाद होने पर उन्हें आर्थिक लाभ मिलेगा। दो जुलाई 1982 को अंग्रेजों से आजीवन लोहा लेने वाले इस महान सेनानी का निधन हो गया। आजादी के आन्दोलन में पैतृक धन सम्पत्ति से लेकर सुख चैन गंवाने वाले सेनानी गुरुप्रसाद के तीन पुत्रों में दो बेटे वाराणसी एवं एक बेटा गोण्डा में रहते हैं। ऐसे समर्पित सेनानी की स्मृति को संरक्षित करने के लिए स्वतन्त्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन द्वारा नगर के किसी चौराहे पर गुरुप्रसाद गुप्ता की प्रतिमा स्थापित करने की मांग वर्षों से लाल फीताशाही के कारण साकार नही हो सकी।
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आजादी की लड़ाई में जनपद की रही अग्रणी भूमिका......
गोण्डा।
ब्रिटिश शासन के विरोध में 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम से लेकर बीसवीं सदी में कांग्रेस के सत्याग्रह आन्दोलन में जनपद की प्रमुख भूमिका रही है। आजादी की लड़ाई में जनपद गोण्डा की भूमिका पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यधर्मी आर. जे. शुक्ल 'यदुराय' बताते हैं कि आन्दोलनों की शृंखला में 1907 में जनपद में भयंकर अकाल पड़ने पर लाला लाजपतराय ने दौरा किया। उनके आह्वान पर आर्य समाजियों ने कांग्रेस की सदस्यता लेकर राहत शिविर की स्थापना की और लोगो को जागृत किया। जलियांवाला बाग कांड की जिले में तीव्र प्रतिक्रिया हुई। कांग्रेस के अग्रणी नेता बाबू ईश्वर शरण, बाबूलाल विहारी टण्डन, राम चन्द्र श्रीवास्तव उर्फ बच्चू बाबू के नेतृत्व में सैकड़ों सत्याग्रहियों आन्दोलन को धार दिया। पच्चिस जून 1922 को कांग्रेस सम्मेलन में पं मोतीलाल नेहरू की उपस्थिति में डेढ़ हजार सत्याग्रहियों ने खद्दर पहनने का संकल्प लिया, 30-31 मार्च 1922 को बभनान के सन्निकट सिसई रानीपुर में प्राध्यापक व साहित्यकार डा. शैलेन्द्र नाथ मिश्र के बाबा पं. दातादीन मिश्र के संयोजन में कांग्रेस का वृहत किसान सम्मेलन में पं. जवाहर लाल नेहरू, इन्दिरा गांधी सहित अनेक राष्ट्रीय नेताओं ने भाग लेकर स्वतंत्रता आन्दोलन को परवाना चढाया। इस सम्मेलन में बाबू द्वारिका सिंह, मथुरा सिंह, पूर्व स्वतन्त्रता सेनानी अध्यक्ष पं. गया प्रसाद मिश्र आदि नेताओं की प्रमुख भूमिका रही। सन् 1924 में कांग्रेस संगठन को सशक्त बनाने के लिए रघुपति सहाय 'फिराक' ने जनपद का दौरा किया। फरवरी 1928 को साइमन कमीशन के विरोध में जनपद में पूर्ण बन्दी रही। नौ अक्टूबर 1931को मनकापुर के महाराज रघुराज सिंह के आमन्त्रण पर महात्मा गांधी ने दौरा किया और मनकापुर व गोण्डा के रानी बाजार में आयोजित सभाओं में जनता ने महात्मा जी की सहयोग राशि से झोली भर दी। नगर के गोलागंज स्थित प्रेम पकडिया मैदान में 11अप्रैल 1930 को नमक आन्दोलन का आयोजन किया। जनपद के अन्य स्थानों पर कांगेसियों ने नमक बनकर अंग्रेजों का कानून तोडा। 17 दिसम्बर सन् 1927 को काकोरी कांड के क्रांतिकारी राजेन्द्र लाहिडी को गोण्डा कारागार में फांसी दी गई। सन् 1937 के प्रांतीय असेम्बली चुनाव में बाबू ईश्वरशरण व बाबू लालविहारी टण्डन विधायक चुने गए। इसी कड़ी में स्वतंत्रता आंदोलन में युवाओं व छात्रों की भूमिका सुनिश्चित करने के लिए लिए सुभाष चन्द्र बोस ने नगर में दौरा किया और रामचन्द्र श्रीवास्तव उर्फ बच्चू बाबू के घर प्रवास कर उन्हें आन्दोलन की बागडोर सौंपी। नौ अगस्त 1942 को कांग्रेस के निर्णायक 'अंग्रेजों भारत छोडो ' के ऐतिहासिक आंदोलन में जनपद के सैकड़ों सेनानियों ने ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ गिरफ्तारी दी। पंद्रह अगस्त 1947 को देश आजाद होने पर नगर व गांव में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर जश्न मनाया गया।